Indian Women's Rights in Hindi

 Women's Rights  in Hindi



हेलो दोस्तो आप सब कैसे हैं आशा करता हूं आप सब बहुत ही अच्छे होगें दोस्तों आज का हमारा टॉपिक है महिलाओ के अधिकार तो चलिए शुरू करते हैं पूरा जानने के लिए पोस्ट को लास्ट तक जरूर पढ़े?

पिता की संपत्ति पर हक - महिलाओं को अपने  पिता और पिता की पुश्तैनी संपत्ति में पूरा अधिकार मिला हुआ है। अगर लड़की के पिता ने खुद बनाए। संपत्ति के मामले में कोई वसीयत नहीं की है, तब  उनके बाद प्रोपर्टी में लड़की को भी उतना ही हिस्सा मिलेगा जितना लड़के को और उनकी मां को। जहां तक शादी के बाद इस अधिकार का सवाल है तो यह अधिकार शादी के बाद भी कायम रहेगा।

Indian Women's Rights  in Hindi
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पति से जुड़े हक - संपत्ति पर हक शादी के बाद पति की संपति में महिला का मालिकाना हक नहीं। होता लेकिन पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता दिया जाता है। महिला को यह अधिकार है कि उसका भरण-पोषण उसका पति करे  और पति की जो हैसियत है, उस हिसाब से भरण पोषण होना चाहिए। वैवाहिक विवादों से संबंधित मामलों में कई कानूनी प्रावधान हैं, जिनके जरिए पत्नी गुजारा भता माग सकती है।

कानूनी जानकार बताते हैं कि सीआरपीसी हिंदू  मैरिज ऐक्ट, हिंदू अडॉशन एंड मेटिनेंस ऐक्ट और घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारे भत्ते की मांग की जा सकती है। अगर पति ने कोई वसीयत बनाई है तो उसके मरने के बाद उसकी पत्नी को वसीयत के  मुताबिक संपत्ति में हिस्सा मिलता है।


लेकिन पति अपनी खुद की अर्जित संपत्ति की ही। वसीयत कर सकता है। पैतृक संपत्ति की अपनी पत्नी। कि फेवर में विल नहीं कर सकता। अगर पति ने कोई  वसीयत नहीं बनाई हुई हैं और उसकी मौत हो जाए तो पत्नी को उसकी खुद की अर्जित संपत्ति में हिस्सा मिलता है, लेकिन पैतृक संपत्ति मैं वह दावा नहीं कर  सकतीं।

महिलाओ के अधिकार  - Women's Rights  in Hindi I Gyaan bank  

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अगर अनबन हो जाए - अगर पती-पत्नी के बीच किस बात को लेकर अनबन हो जाए और। पत्नी-पती से अपने और अपने बच्चों के लिए गुजारा भत्ता चाहे। तो वह सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारा  भत्ता के लिए अर्जी दाखिल कर सकती है। साथ ही हिंदू अडॉप्शान एंट मेंटेनेस ऐक्ट की धारा-18 के तहत भी अर्जी दाखिल की जा सकती है। घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता को मांग पत्नी कर सकती है।

अगर पति और पत्नी के बीच तलाक का केस चल। रहा हो तो वह हिंद मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत गुजारा भत्ता मांग सकती है। पति-पत्नी में तलाक हो जाए तो तलाक के वक्त जो मुआवजा राशि तय होती है, वह भी पति की सैलरी और । उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर ही तय होती है।

मिलेंगे और अधिकार- हाल ही में केंद्र सरकार ने फैसला लिया है कि  तलाक होने पर महिला को पति की पैतृक व विरासत योग्य संपत्ति से भी मुआवजा या हिस्सेदारी  मिलेगी। इस मामले में कानून बनाया जाना है और इसके बाद पत्नी का हक बढाने की बात कही जा रही  है। अगर पत्नी को तलाक के बाद पति की पैतृक संपति में भी हिस्सा दिए जाने का प्रावधान किया गया तो इससे महिलाओं का हक बढ़ेगा। वैसी  स्थिति में पति इस बात का दावा नहीं कर सकता कि उसके पास अपनी कोर्ई संपत्ति नहीं है या फिर। उसकी नौकरी नहीं है। पैतृक संपत्ति में हक मिलने  से तलाक के वक्त जब मुआवजा तय किया जाएगा, तो पति की सैलरी, उसकी अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति के आधार पर गुजारा भत्ता और मुआवजा तय किया जाएगा।



खुद की संपत्ति पर अधिकार -कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित संपत्ति को चाहे तो वह बेच सकती है। इसमें कोई दखल नहीं दे सकता। महिला इस संपत्ति का वसीयत कर सकती है और चाहे तो  महिला उस संपत्ति से अपने बच्चो को बेदखल भी कर सकती है

घरेलू  हिंसा से  सुरक्षा - महिलाओं को अपने पिता के घर या फिर अपने पति के घर सुरक्षित रखने के लिए डीवी ऐक्ट (डोमेस्टिक  वाॅयलेंस ऐक्ट) का प्रावधान किेया गया है। महिला का कोई भी डोमेस्टिक रिलेटिव इस कानून के दायरे। में आता है।


क्या हैं घरेलू हिंसा - घरेल हिंसा का मतलब हैं महिला के साथ किसी भी तरह को हिंसा या प्रताड़ना। अगर महिला के साथ  मारपीट की गई हो या फिर मानसिक प्रताड़ना दी गई हो तो वह डीवी ऐक्ट के तहत कवर होगा। महिला के साथ मानसिक प्रताडना से मतलब है। ताना मारना या फिर गाली-गलौज करना या फिर  अन्य तरह से भावनात्मक ठेस पहंचाना। इसके अलावा आर्थिक प्रताड़ना भी इस मामले में कवर होता है। यानी किसी महिला को खर्चा न देना या उसकी सैलरीं आदि ले लेना या फिर उसके नौकरी  आदि से सम्बंधित दस्तावेज कब्ज़े में ले लेना भी प्रताडना है।

इन तमाम मामलों में महिला चाहे व पत्नी हो या बेटी या फिर मां ही क्यों न हो, वह इसके लिए  आवाज उठा सकती है और घरेलू हिंसा कानून का सहारा ले सकती है। किसी महिला को प्रताड़ित किया जा रहा हो, उसे घर से निकाला जा रहा हो या फिर आर्थिक तौर पर परेशान किया जा रहा हो तो वह डीवी ऐक्ट के तहत शिकायत कर सकती है।

क्या है डोमेस्टिक रिलेशन -एक ही छत के नीचे किसी भी रिश्ते के तहत रहने वाली महिला प्रताड़ना की शिकायत कर सकती है। और वह हर रिलेशन डोमेस्टिक रिलेशन के दायरे में  आएगा। डीवी ऐक्ट के तहत एक महिला जो शादी के रिलेशन में हो तो वह ससुराल में रहने वाले किसी। भी महिला या पुरुष की शिकायत कर सकती है। लेकिन वह डोमेस्टिक रिलेशन में होने चाहिए। अगर  महिला शादी के रिलेशन में नहीं है और उसके साथ डोमेस्टिक रिलेशन मैं वॉयलेंस होती है तो वह ऐसी। स्थिति में इसके लिए केवल जिम्मेदार पुरुष को ही प्रतिवादी बना सकती है। अपनी मां, बहन या भाभी  को वह इस एक्ट के तहत प्रतिवादी नहीं बना सकती ।

डीवी एक्ट की धारा -12—इसके तहत महिला मेट्रोपॉलटन मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है। शिकायत पर सुनवाई के  दौरान अदालत प्रोटेक्शन ऑफिसर से रिपोर्ट मांगता है। महिला जहां रहती है या जहां उसके साथ घरेलू  हिंसा हुई है या फिर जहां प्रतिवादी रहते हैं, वही शिकायत की जा सकती है। प्रोटेक्शन ऑफिसर । इंसिडेंट रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करता है और  उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत प्रतिवादी को समन जारी करता है।

प्रतिवादी का पक्ष सुनने के बाद अदालत अपना  आदेश पारित करती है। इस दौरान अदालत महिला को उसी घर में रहने देने, खर्चा देने या फिर उसे  प्रोटेक्शन देने का आदेश दे सकती है। अगर अदालत महिला के फेवर मे आदेश पारित करती है और प्रतिवादी उस आदेश का पालन नहीं करता है तो डीवी ऐक्ट-31 के तहत प्रतिवादी पर केस बनता  है।



इस एक्ट के तहत चलाए गए मुकदमे में दोषी पाए जाने पर एक साल तक केद को सजा का प्रावधान  है। साथ ही 20 हजार रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान है। यह केस गैर जमानती और कॉंग्रेजिबल  होता है।


लव इन रिलेशन में भी डीवी एक्ट- लिव-इन रिलेशनशिप मे रहने वाली महिलाओं को  डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के तहत प्रोटेक्शन मिला  हुआ है। डीवी ऐक्ट के प्रावधानों के तहत उन्हे मुआवजा आदि मिल सकता है। कानूनी जानकारों कि मुताबिक लिव-इन रिलेशनशिप के लिए देश में  नियम तय किए गए हैं। ऐसे रिश्ते में रहने वाले लोगों को कुछ कानूनी अधिकार मिले हुए है।

लव-इन में अधिकार - सिर्फ उसी रिश्ते को लिव-इ्न रिलेशनशिप माना जा  सकता है, जिसमें स्त्री और पुरुष विवाह किए बिना पति-पती की तरह रहते हैं। इसके लिए जरूरी है कि । दोनों बालिका और शादी योग्य हों। यदि दोनों में से  कोर्ट एक या दोनों पहले से शादीशुदा है तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं कहा जाएगा। अगर दोनों। तलाक शुदा हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं तो इसे लिव-इन रिलेशनशिप माना जाएगा।

लिव-इन रिलेशन में रहने वालो महिला को घरेल  हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन मिला हुआ है। अगर  उसे किसी भी तरह से प्रतांडित किया जाता है तो वह उसके खिलाफ इस ऐक्ट के तहत शिकायत कर  सकती है। ऐसे संबंध मैं रहते हुए उसे राइट -टु-शोल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह । रिलेशनशिप कायम है तब तक उसे जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता। लेकिन संबंध खत्म होने । के बाद यह अधिकार खत्म हो जाता है। लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का भी  अधिकार है।

हालांकि पार्टनर की मृत्यु के बाद उसको संपति में अधिकार नहीं मिल सकता लेकिन पार्टनर के पास । बहुत ज्यादा प्रॉपर्टी है और पहले से गुजारा भत्ता तय  हो रखा है तो वह भत्ता जारी रह सकता है, लेकिन उसे संपत्ति में कानूनी अधिकार नहीं है। यदि लिव-इन में रहते हुए पार्टनर ने वसीयत, के जरिये संपत्ति लिव-इन पार्टनर को लिख दी है तो तो मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पार्टनर को मिल जाती है।

सेक्सुअल हैरेसमेंट से प्रोटेकन -सेक्सुअल हैरेसमेंट, छेड़छाड़ या फिर रेप जैसे। वारदातों के लिए सख्त कानून बनाए गए हि। महिलाओं के खिलाफ इस तरह के घिनौने अपराध' करने वालों को सख़्त सजा दिए जाने का प्रावधान  किया गया है। । दिसंबर की गेंग रिप की घटना के बाद सरकार ने वर्मा कमिशन की सिफारिश पर ऐंटि-रेप लाॅ बनाया। इसके तहत जो कानून। प्रावधान किए गए हैं, उसमें रेप की परिभाषा में बदलाव किया गया है।

आईपीसी की धारा-375 के तहत रेप के दायरे में प्राइवेट पार्ट या फिर ओरल सेक्स दोनों को ही रेप माना गया है। साथ ही प्राइवेट पार्ट के पेनिट्रेशन के अलावा किसी चीज के पेनिट्रेशन को भी इस दायरे में रखा गया है। अगर कोई शख्स किसी महिला के  प्राइवेट पार्ट या फिर अन्य तरीके से पेनिट्रेशन करता है तो वह रेप होगा। अगर कोई शख्स महिला के प्राइवेट पार्ट में अपने शरीर का अंग या फिर अन्य चीज डालता है तो वह रेप होगा।

बलात्कार के वैसे मामले जिसमें पीड़िता की मौत हो  जाए या कोमा में चली जाए, तो फाँसी की सजा का प्रावधान किया गया है रेप में कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है। रेप के कारण लड़की कोमा में चली जाए या फिर कोई शख्स दोबारा रेप के लिए दोषी। पाया जाता है तो वैसे मामले में फाँसी तक का प्रावधान किया गया है।

नए कानून के तहत छेड़छाड़ के मामलों को नए सिरे  से परिभाषित किया गया है। इसके तहत आईपीसी की धारा-354 को कई सब सेक्शन में रखा गया है।

  • 354-ए के तहत प्रावधान है कि सेक्सुअल  नेचर का कॉन्टैेक्ट करना, सेक्सुअल फेवर  माँगना आदि छेडछाड के दायरे में आएगा इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। अगर कोई  शख्स किसी महिला पर सेक्सुअल कॉमेट करता है तो एक साल तक केद की सजा का प्रावधान है।

  • 354-बी के तहत अगर कोई शख्स महिला की इज्जत के साथ खेलने के लिए जबर्दस्ती  करता है या फिर उसके कपड़े उतारता है या इसके लिए मजबूर करता है तो 3 साल से  लेकर 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान हैं ।

  • 354-सी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई। शख्स किसी महिला के प्राइवेट ऐक्ट की  तस्वीर लेता है और उसे लोगों में फैलता है तो ऐसे मामले में 1 साल से 3 साल तक की सजा का प्रावधान हैं। अगर दोबारा ऐसी हरकत करता है तो 3 साल से 7 साल तक  कैद की सजा का प्रावधान है।

  • 354-डी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला का जबरन पीछा करता है या कांटैेक्ट करने की कोशिश करता है तो। ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 3 साल तक  कद को सजा का प्रावधान है। जो भी मामले संज्ञेय अपराध यानी जिन मामलों में साल से ज्यादा सजा का प्रावधान है, उन मामलों में शिकायती के बयान के आधार पर या फिर पुलिस खुद संज्ञान लेकर केस दर्ज कर सकती हैं।

वर्क प्लेस पर प्रोटेक्शन - 
वर्क प्लेस पर भी महिलाओं को तमाम तरह के  अधिकार मिल हुए हैं। सेक्सुअल हैरेसमेंट से बचाने। के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में विशाखा जजमेंट के  तहत गाइडलाइंस तय की थी । इसके तहत महिलाओं को प्रोटेक्ट किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट की यह गाइडलाइंस तमाम सरकारों व  प्राइवेट दफ्तरों में लागू है। इसके तहत एंप्लॉयर की  जिम्मेदारी है कि वह गुनहगार के खिलाफ कार्रवाई करे।

सुप्रीम कोर्ट ने 12 गाइडलाइंस बनाई हैं। एंप्लॉयर  या अन्य जिम्मेदार अधिकारी की ड्यूटी है कि वह सेक्सुअल हैरेसमेंट को रोके। सेक्सुअल हैरेसमेंट के  दायरे में छेड़छाड़, गलत नीयत से टच करना, सेक्सुअल फेवर की डिमांड या आग्रह करना, महिला सहकर्मी को पॉर्न दिखाना, अन्य तरह से  आपत्तिजनक व्यवहार करना या आग्रह या फिर इशारा करना आता है। इन मामलों के अलावा, कोई ऐसा ऐक्ट जो आईपीसी के तहत ऑफेंस हैं, की शिकायत  महिला कर्मी द्वारा की जाती है, तो एंप्लॉयर की ड्यूटी है कि वह इस मामले में कार्रवाई करते हुए संबंधित अथॉरिटी को शिकायत करे ।


कानून इस बात को सुनिश्चित करता है कि विक्टिम अपने दफ्तर में किसी भी तरह से पीड़ित-शोषित  नहीं होगी। इस तरह की कोई भी हरकत दुर्व्यवहार के दायरे में होगा और इसके लिए अनुशासनात्मक कर्रवाई का प्रावधान हैं। प्रत्येक दफ्तर में एक  कंप्लेंट कमिटी होगी, जिसकी चीफ महिला होगी। कमिटी में महिलाओं की संख्या आधे से ज्यादा होगी।

इतना ही नहीं, हर दफ्तर को साल भर में आई ऐसी  शिकायतों और कार्रवाई के बारे में सरकार को रिपोर्ट  करना होगा। मौजूदा समय में वर्क प्लेस पर सेक्सुअल हैरेसमेंट रोकने के लिए विशाखा जजमेंट  के तहत ही कार्रवाई होती है। इस बाबत कोई कानून नहीं है, इस कारण गाइडलाइंस प्रभावी है। अगर कोई ऐसी हरकत जो आईपीसी के तहत  अपराध है, उस मामले में शिकायत के बाद केस दर्ज। किया जाता है। कानून का उल्लघंन करने वालों के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत  कार्रवाई होती है।

मेटरनिटी लीव  - गर्भवती महिलाओं के कुछ खास अधिकार हैं।


इसके लिए संविधान में। प्रावधान  किए गए हैं। संविधान के
अनुच्छद के तहत कामकाजी महिलाओं को तमाम अधिकार दिए गए हैं। पार्लियामेंट ने 1961 मे। यह कानून बनाया था। इसके तहत कोई भी महिला अगर सरकारी नौकरी में है या फिर किसी फैक्ट्री में या किसी अन्य प्राइवेट संस्था में, जिसकी स्थापना  इम्प्लाॅइज स्टेट इंश्योरेंस ऐक्ट 1948 के तहत हुई हो, में काम करती है तो उसे मेटरनिटी बेनिफिट मिलेगा। इसके तहत महिला को 12 हफ्ते को मैटरनिटी लीव मिलती है जिसे वह अपनी जरूरत के हिसाब से ले सकती है। इस दौरान महिला को वही सैलरी और भत्ता दिया जाएगा जो उसे आखिरी बार  दिया गया था। अगर महिला का अबॉर्शन हो जाता है तो भी उसे इस ऐक्ट का लाभ मिलेगा।

इस कानून के तहत यह प्रावधान है कि अगर महिला  प्रेग्नेंसी के कारण या फिर वक्त से पहले बच्चे का जन्म होता है या फिर गर्भपात हो जाता है और इन  कारणों से अगर महिला बीमार होती है तो मेडिकल रिपोर्ट आधार पर उसे एक महीने का अतिरिक्त अवकाश मिल सकता है।

इस दौरान भी उसे तमाम वेतन ओर भत्ते मिलते। रहेंगे। इतना ही नहीं डिलिवरी के 15 महीने बाद तक महिला को दफ्तर में रहने के दौरान दो बार नर्सिंग ब्रेक मिलेगा। केन्द्र सरकार ने सुविधा दी है कि सरकारी महिला कर्मचारी, जो मां हैं या बने वाली है तो उन्हें मेटरनिटी पिरियड में विशेष छूट मिलेगी। इसके तहत महिला कर्मचारियों को अब 135 दिन की जगह 180 दिन की मेटरनिटी लीव मिलेगी।

इसके अलावा वह अपनी नौकरी के दौरान 2 साल (730 दिन) की छुट्टी ले सकेंगी। यह छुट्टी बच्चे के 18 साल के होने तक वे कभी भी ले सकती हैं। यानी कि बच्चे की बीमारी या पढ़ाई आदि में, जैसी जरूरत हो।

मीटरनिटी लीव के दौरान महिला पर किसी तरह का आरोप लगाकर उसे नौकरी से नहीं निकाला जा  सकता। अगर महिला का एम्प्लॉयर इस बेनीफट से उसे वंचित करने की कोशिश करता है तो महिला इसकी शिकायत कर सकती है। महिला कोर्ट जा  सकती है और दोषी को एक साल तक केद की सजा हो सकती है।

आज के पोस्ट में बस इतना ही अगले पोस्ट में और नए टॉपिक के साथ मिलते हैं तब तक के लिए बाय अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा तो आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और नीचे कमेंट करके बताएं कि आपको यह पोस्ट लेख कैसा लगा?

अगर आपके मन में कोई डाउट हो तो आप नीचे कमेंट करके पूछ कर सकते हो?


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