सेल्फ डिफेंस में कितनी चोट दी जा सकती है ? (हिंदी में आत्मरक्षा कानून)
हिंदी में आत्म रक्षा कानून - सेल्फ डिफेंस का मतलब है कि कोई भी शख्स अपने शरीर या फिर अपनी प्रॉपर्टी को बचाने के लिए फाइट कर सकता है। लेकिन कानून कहता है कि कोई भी शख्स अपने बचाव में किसी और को उतना ही नुूकसान पहंचा सकता है जितना उसके बचाव के लिए जरूरी था। IPC की धारा 103 के मुताबिक लूट, रात्रि में घर में सेंध,आगजनी, चोरी आदि की स्थिति में अगर जान का खतरा हो तो आक्रमणकारी की हत्या करना न्याय संगत होगा। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 96 से लेकर 106 तक की धारा में सभी व्यक्तियों को सेल्फ डिफेंस का अधिकार दिया गया है ।
- व्यक्ति स्वयं की रक्षा किसी भी हमले या अंकुशके खिलाफ कर सकता है।
- व्याक्ति स्वयं की संपत्ति का रक्षा किसी भी चोरी, डकेती, शरारत व अपराधिक अतिचार क खिलाफ कर सकता है।
- पेरेंटस या फेमिली पर हमला होते हुए देखकर भी कानून हाथ में लिया जा सकता है।
जान का खतरा होना जरूरी - सेल्फ डिफेंस में अगर किसी पर गोलों चलाई गई हो तो यह संबित करना होगा कि गोली चलाए बिना उसकी खुद की जान नहीं बच सकती थी। अगर कुछ अपराधी हथियारों के साथ किसी के घर में लूट अथवा चोरी के इरादे से घुसते है तो ऐसी स्थिति में निश्चित तौर पर घर के मालिक को जान को खतरा हो सकता है। ऐसी सूरत में घर का मालिक जान माल की रक्षा के लिए अपने लाइसेंस हथियार से गोली चला सकता हैं और इस गोलोबारी में अगर किसी अपराधी की मौत हो जाए तो घर का मालिक अपने सेल्फ डिफेंस की दलील दे सकता है। तब अदालत यह देखेगी कि क्या वाकई अपराधी हथियारों से लैस थे। अगर कोई सेंधमार चोरी के इरादे से घर में घुसता है तो ऐसी सूरत में उस पर गोली चलाना सेल्फ डिफेंस के दायरे से बाहर होगा क्योंकि ऐसी सूरत में उसे रोकने के लिए। उसे डंडे आदि से पीटने पर भी बचाव हो सकता था
डिफेंस मैं मौत भी माफ - IPC की धारा-9 के तहत सेल्फ डिफेंस की बात कही गई है। वही IPC की धारा 97 के तहत बताया गया है कि प्रत्येक शख्स को शरीर और संपत्ति की रक्षा का अधिकार है और इसके लिए वह सेल्फ डिफेंस में अटेक कर सकता है। वहीं धारा 99 कहती है कि सेल्फ डिफेंस रीजनेबल होना चाहिए। यानी अपराधी को उतनी ही क्षति पहुँचाई जा सकती है। जितनी जरूरत है। धारा-100 के मुताबिक सेल्फ डिफेंस में अगर किसी अपराधी की मौत भी हो जाए, तो भीं बचा जा सकता है बशर्ते कानून प्रावधान के तहत ऐसा एक्ट किया गया हो। अगर गंभीर चोट पहुंचने का खतरा हो, रेप या फिर दुराचार का खतरा हो, अपराधी अगर, अपहरण की कोशिश में हो तो ऐसी सूरत में सेल्फ डिफेंस में किए गए अटेक में अगर अपराधी का मौत भी हो जाए तो अपना बचाव किया जा सकता है। लेकिन यह सांबित करना होगा कि उक्त कारणों से अटेक किया गया है।
अब परेंटस या फेमिली पर हमला होते हुए देखकर भी कानून हाथ मे लिया जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। अपने इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सैल्फ डिफेंस का दायरा बड़ा दिेया है। कोर्ट ने कहा, "अगर कोई शख्स अपने परेंटस या फिर फैमिली पर हमला होता देखे तो उसे उनके बचाव में कानून हाथ में लेने का हक है।
भीड़ नहीं उतार सकती गुस्सा - कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है कि जब गली मोहल्ले में चोर झपटमार या फिर छेडछाड आदि के आरोपी पकड़े जाते हैं और मॉब गुस्से में आकर उसके साथ मारपीट करती है लेकिन कानूनी तौर पर किसी भी ऐसे आरोपी के साथ मारपीट नहीं की जा सकती। CRPC की धारा- 43 के तहत आम पब्लिक को यह अधिकार है कि वह संज्ञेय अपराध होने की स्थिति में आरोपी को पकड़ सकती है और पुलिस के हवाले कर सकती है। लेकिन कानून किसी को भी अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। आरोपी के साथ पुलिस भी मारपीट नहीं कर सकता। किसी भी आरोपी को कानून के तहत ही सजा दिया जा सकता है।
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2 comments
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