बैलाडीला ( bailadila)
बैलाडीला छत्तीसगढ़ में स्थित पहाड़ियों की सुंदर श्रृंखला है जहाँ प्रचुर मात्रा में लौह खनिज पाया जाता है। पर्वत की सतह बैल के कूबड़ की तरह दिखती है अत: इसे “बैला डीला” नाम दिया गया है जिसका अर्थ है “बैल की कूबड़” (वहां के स्थानीय भाषा में बैला बैल को बोलते हैं और डीला बैल के कूबड़ को बोलते है)
बैलाडीला एक औद्योगिक क्षेत्र है जिसे दो शहरों बछेली और किरंदुल में बांटा गया है। सबसे अधिक लौह खनिज आकाश नगर नाम की पहाड़ी की चोटी पर मिलता है जो सबसे ऊंची चोटी भी है। हालाँकि इस चोटी की सैर करने के लिए राष्ट्रीय खनिज विकास निगम से अनुमति लेनी होती है। इस चोटी से सुंदर दृश्यों और हरे भरे जंगलों का आनंद उठाया जा सकता है। ज्योग्राफिकल सर्वे ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक बैलाडीला पर्वत श्रृंखला समुद्र तल से 3 से 4 हजार फुट तक ऊंची है। सबसे ऊंची चोटी नंदीराज की ऊंचाई 4,185 फीट है। जैव विविधता के लिए भी बैलाडीला पर्वत श्रृंखला का खासी पहचान है। जीवित जीवाश्म कहे जाने वाले फर्न ट्री, बेंत बांस के झुरमुट के अलावा इलाके में मिली वनस्पतियों की 36 विभिन्न प्रजातियाें को सूचीबद्ध किया गया था।
बैलाडीला एक औद्योगिक क्षेत्र है जिसे दो शहरों बछेली और किरंदुल में बांटा गया है। सबसे अधिक लौह खनिज आकाश नगर नाम की पहाड़ी की चोटी पर मिलता है जो सबसे ऊंची चोटी भी है। हालाँकि इस चोटी की सैर करने के लिए राष्ट्रीय खनिज विकास निगम से अनुमति लेनी होती है। इस चोटी से सुंदर दृश्यों और हरे भरे जंगलों का आनंद उठाया जा सकता है। ज्योग्राफिकल सर्वे ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक बैलाडीला पर्वत श्रृंखला समुद्र तल से 3 से 4 हजार फुट तक ऊंची है। सबसे ऊंची चोटी नंदीराज की ऊंचाई 4,185 फीट है। जैव विविधता के लिए भी बैलाडीला पर्वत श्रृंखला का खासी पहचान है। जीवित जीवाश्म कहे जाने वाले फर्न ट्री, बेंत बांस के झुरमुट के अलावा इलाके में मिली वनस्पतियों की 36 विभिन्न प्रजातियाें को सूचीबद्ध किया गया था।
बादलों का नगर - आकाश नगर....
बस्तर पूर्णतः पहाड़ी क्षेत्र है जो कि घने वनों से आच्छादित है। इन गगनचूंबी पहाड़ियों के कारण यहां का मौसम वर्ष भर सुहाना रहता है। बस्तर की बैलाडिला पहाड़ी श्रृंखला अपने शुद्ध लौह अयस्क के लिये पुरे विश्व में मशहूर है। यहां की लौह खदान पुरे एशिया में सबसे बड़ी लौह खदानों में से एक है। बैलाडिला पर्वत श्रृंखला में नंदीराज की चोटी पुरे बस्तर में पहली एवं छत्तीसगढ़ में दुसरी सबसे उंची चोटी है। इसकी उंचाई लगभग 3000 फिट तक है।
नंदीराज पर्वत की आकृति बैल के कुबड़ के समान है जिसके कारण इस क्षेत्र को बैलाडिला के नाम से जाना जाता है। 1966 ई में एनएमडीसी ने बचेली और किरन्दुल से लौह अयस्क का खनना प्रारंभ किया था। पहाड़ों पर एनएमडीसी ने कर्मचारियों के रहने के लिये बचेली शहर में पहाड़ के उपर आकाश नगर एवं किरन्दुल में पहाड़ के उपर कैलाश नगर बसाये थे। ये बस्तर के पहले हिल स्टेशन थे। इन हिल स्टेशनों का मौसम बेहद ही सुहावना होता है। यहां समय बिताने का एक अलग ही अनुभव होता है।
बैलाडिला की पुरी पहाड़ियां घने वनों से ढकी हुई है जिसके कारण यहां साल भर वर्षा होते रहती है। अधिक उंचाई के कारण ये पहाड़ियां साल में अधिकतर समय बादलों से ढकी रहती है। आकाशनगर में बरसात के समय तो बादल पुरी तरह से छा जाते है। बादलों का जमावड़ा हो जाता है जिसके कारण भरे दिन में भी एक फीट की दुरी का दृश्य भी नजर नही आता है।
बादल घरों का दरवाजा खटखटाते है ऐसी अनोखी घटना सिर्फ आकाश नगर में ही होती है। बादलों की दौड़ देखना हो तो आकाश नगर में ही इसका आनंद लिया जा सकता है। चेहरे पर पड़ती हल्की फुहारे तन मन को प्रफुल्लित कर देती है। आकाश नगर को बादलों का नगर कहे तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सचमूच बादलों से बाते और मित्रता सिर्फ आकाश नगर में ही की जा सकती है।
बचेली से पहाड़ पर स्थित आकाश नगर तक जाने की कुल दुरी 30 किलोमीटर है। 30 किलोमीटर की धुमावदार सर्पीली घाटियों से जाते समय तन का रोम रोम रोमांचित हो जाता है। एक तरफ तो सुहावने मनमोहक दृश्य तो दुसरी तरफ गहरी खाईया ये दोनो के दृश्यों से भय एवं रोमांच का मिश्रित भाव उत्पन्न होता है। तन पर पड़ती पानी की हल्की फुहारे तो खुशी को दुगुनी कर देती है।
प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को पुरे देश में विश्वकर्मा जयंती बड़े धुमधाम से मनाई जाती है। बैलाडिला के इन औद्योगिक नगरों में भी विश्वकर्मा जयंती के दिन विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन लौह अयस्क खनन कार्य पूर्णतः बंद रहता है। नक्सली घटनाओं के कारण आकाश नगर पूर्णतः खाली कर दिया गया है एवं आम लोगों की आवाजाही बंद है।
17 सितंबर को ही मात्र एक दिन के लिये आकाश नगर सैलानियों के लिये खोल दिया जाता है जिसमें अपनी चारपहिया वाहनों या दोपहिया वाहनों से पर्यटक वहां जा पाते है। एनएमडीसी प्रबंधन के द्वारा भी पर्यटकों के आने जाने के लिये बस की व्यवस्था रहती है। खदान क्षेत्र में लगी भीमकाय वाहनों को देखने का अवसर इस दिन प्राप्त हो पाता है। इन दानवाकार वाहनों का आकार किसी तीन मंजिला भवन से कम नहीं होता है। इनके पहियें की उंचाई मात्र ही 10 फिट तक होती है।
भक्तिमय वातावरण में , सर्पिलाकार घाटियों में बादलो के साथ सफर करने का अनुभव काफी रोमांचकारी होता है। ऐसा अनुभव लेना है तो 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती के उपलक्ष्य मे आकाशनगर जरूर आये। रायपुर से बचेली की कुल दुरी 450 किलोमीटर है। रायपुर से बैलाडिला की सीधी बसे उपलब्ध है।
कैसे पहुंचे बैलाडिला -
वायु मार्ग : रायपुर एयरपोर्ट और विशाखापट्नम एयरपोर्ट द्वारा बैलाडिला तक पहुंचा जा सकता है। ये दोनों ही एयरपोर्ट यहां से 285 किमी ओर 340 किमी की दूरी पर स्थित हैं। ये दोनों एयरपोर्ट भारत शहरों जैसे बैंगलोर, हैदराबार, कोलकाता और नई दिल्ली से अच्दी तरह से जुड़ा हुआ है। और रायपुर या विशाखापट्नम से जगदलपुर एयरपोर्ट से आया जा सकता है जगदलपुर से बैलाडिला बस से जाना पड़ेगा।
रेल मार्ग : कोलकाता, विशाखापट्नम और भुवनेश्वर जैसे शहरों से जुड़ा है किरंदुल रेलवे स्टेशन जो कि बैलाडिला का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग : बैलाडिला छोटा शहर है लेकिन फिर भी छत्तीसगढ़ में ये बुहत लोकप्रिय है। इसलिए ये शहर राज्य की राजधानी रायपुर से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। पूरा राज्य सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार द्वारा झांसी, इलाहाबाद और कानपुर आदि से यहां के लिए बसें आदि भी चलती हैं जोकि सीधा आपको बैलाडिला तक ले जाएंगीं!
आपको यहां एक बार जरूर घूमने जाना चाहिए क्योंकि यह बहुत ही अच्छा जगह है और आप यहां घूम कर बहुत मजे ले सकते हो
आज के पोस्ट में बस इतना ही अगले पोस्ट में और नए टॉपिक के साथ मिलते हैं तब तक के लिए बाय अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा तो आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और नीचे कमेंट करके बताएं कि आपको यह पोस्ट लेख कैसा लगा?
अगर आपके मन में कोई डाउट हो तो आप नीचे कमेंट करके पूछ कर सकते हो?
Thank you…
बैलाडिला की पुरी पहाड़ियां घने वनों से ढकी हुई है जिसके कारण यहां साल भर वर्षा होते रहती है। अधिक उंचाई के कारण ये पहाड़ियां साल में अधिकतर समय बादलों से ढकी रहती है। आकाशनगर में बरसात के समय तो बादल पुरी तरह से छा जाते है। बादलों का जमावड़ा हो जाता है जिसके कारण भरे दिन में भी एक फीट की दुरी का दृश्य भी नजर नही आता है।
बादल घरों का दरवाजा खटखटाते है ऐसी अनोखी घटना सिर्फ आकाश नगर में ही होती है। बादलों की दौड़ देखना हो तो आकाश नगर में ही इसका आनंद लिया जा सकता है। चेहरे पर पड़ती हल्की फुहारे तन मन को प्रफुल्लित कर देती है। आकाश नगर को बादलों का नगर कहे तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सचमूच बादलों से बाते और मित्रता सिर्फ आकाश नगर में ही की जा सकती है।
बचेली से पहाड़ पर स्थित आकाश नगर तक जाने की कुल दुरी 30 किलोमीटर है। 30 किलोमीटर की धुमावदार सर्पीली घाटियों से जाते समय तन का रोम रोम रोमांचित हो जाता है। एक तरफ तो सुहावने मनमोहक दृश्य तो दुसरी तरफ गहरी खाईया ये दोनो के दृश्यों से भय एवं रोमांच का मिश्रित भाव उत्पन्न होता है। तन पर पड़ती पानी की हल्की फुहारे तो खुशी को दुगुनी कर देती है।
प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को पुरे देश में विश्वकर्मा जयंती बड़े धुमधाम से मनाई जाती है। बैलाडिला के इन औद्योगिक नगरों में भी विश्वकर्मा जयंती के दिन विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन लौह अयस्क खनन कार्य पूर्णतः बंद रहता है। नक्सली घटनाओं के कारण आकाश नगर पूर्णतः खाली कर दिया गया है एवं आम लोगों की आवाजाही बंद है।
17 सितंबर को ही मात्र एक दिन के लिये आकाश नगर सैलानियों के लिये खोल दिया जाता है जिसमें अपनी चारपहिया वाहनों या दोपहिया वाहनों से पर्यटक वहां जा पाते है। एनएमडीसी प्रबंधन के द्वारा भी पर्यटकों के आने जाने के लिये बस की व्यवस्था रहती है। खदान क्षेत्र में लगी भीमकाय वाहनों को देखने का अवसर इस दिन प्राप्त हो पाता है। इन दानवाकार वाहनों का आकार किसी तीन मंजिला भवन से कम नहीं होता है। इनके पहियें की उंचाई मात्र ही 10 फिट तक होती है।
भक्तिमय वातावरण में , सर्पिलाकार घाटियों में बादलो के साथ सफर करने का अनुभव काफी रोमांचकारी होता है। ऐसा अनुभव लेना है तो 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती के उपलक्ष्य मे आकाशनगर जरूर आये। रायपुर से बचेली की कुल दुरी 450 किलोमीटर है। रायपुर से बैलाडिला की सीधी बसे उपलब्ध है।
कैसे पहुंचे बैलाडिला -
वायु मार्ग : रायपुर एयरपोर्ट और विशाखापट्नम एयरपोर्ट द्वारा बैलाडिला तक पहुंचा जा सकता है। ये दोनों ही एयरपोर्ट यहां से 285 किमी ओर 340 किमी की दूरी पर स्थित हैं। ये दोनों एयरपोर्ट भारत शहरों जैसे बैंगलोर, हैदराबार, कोलकाता और नई दिल्ली से अच्दी तरह से जुड़ा हुआ है। और रायपुर या विशाखापट्नम से जगदलपुर एयरपोर्ट से आया जा सकता है जगदलपुर से बैलाडिला बस से जाना पड़ेगा।
रेल मार्ग : कोलकाता, विशाखापट्नम और भुवनेश्वर जैसे शहरों से जुड़ा है किरंदुल रेलवे स्टेशन जो कि बैलाडिला का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग : बैलाडिला छोटा शहर है लेकिन फिर भी छत्तीसगढ़ में ये बुहत लोकप्रिय है। इसलिए ये शहर राज्य की राजधानी रायपुर से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। पूरा राज्य सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार द्वारा झांसी, इलाहाबाद और कानपुर आदि से यहां के लिए बसें आदि भी चलती हैं जोकि सीधा आपको बैलाडिला तक ले जाएंगीं!
आपको यहां एक बार जरूर घूमने जाना चाहिए क्योंकि यह बहुत ही अच्छा जगह है और आप यहां घूम कर बहुत मजे ले सकते हो
आज के पोस्ट में बस इतना ही अगले पोस्ट में और नए टॉपिक के साथ मिलते हैं तब तक के लिए बाय अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा तो आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और नीचे कमेंट करके बताएं कि आपको यह पोस्ट लेख कैसा लगा?
अगर आपके मन में कोई डाउट हो तो आप नीचे कमेंट करके पूछ कर सकते हो?
Thank you…
5 comments
Click here for commentsNice aage bhi aise hi likhte rhe
ReplyNice story
Replynice airticale sir ji
Replynice artical
ReplyWhat a beautiful place?
ReplyWould love to visit it one time.
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